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पीयूष वर्ष छंद (वर्षा वर्णन)

बिजलियों की गूंज, मेघों की घटा।
हो रही बरसात, सावन की छटा।।
ढोलकी हर ओर, रिमझिम की बजी।
हो हरित ये भूमि, नव वधु सी सजी।।

नृत्य दिखला मोर, मन को मोहते।
जुगनुओं के झूंड, जगमग सोहते।।
रख पपीहे आस, नभ को तक रहे।
स्वाति की जलधार, कब नभ से बहे।।

नार पिय से दूर, रह कर जो जिए।
अग्नि सम ये वृष्टि, उसके है लिए।।
पीड़ मन की व्यक्त, मेघों से करे।
क्यों हृदय में ज्वाल, वारिद तू भरे।।

छा गया उत्साह, कृषकों में नया।
दूर सब अवसाद, मन का हो गया।।
नारियों के झूंड, कजरी गा रहे,
कर रहे हैं नृत्य, हाथों को गहे।।
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पीयूष वर्ष छंद विधान –

पीयूष वर्ष छंद चार पदों का 19 मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद 10, 9 मात्रा के दो चरणों में विभक्त रहता है। दो दो पद सम तुकांत रहने आवश्यक हैं।

पद की मात्रा बाँट 2122 21, 22 21S होती है। गुरु वर्ण को 2 लघु करने की छूट है। पद का अंत लघु दीर्घ (1S) वर्ण से होना आवश्यक है।

आनंद वर्धक छंद विधान – पीयूष वर्ष छंद में जब यति की बाध्यता न हो तो यही ‘आनंद वर्धक छंद’ कहलाता है।

मात्रिक छंद परिभाषा

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

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