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प्रदोष छंद

“कविता ऐसे जन्मी है”

मन एकाग्रित कर लिया,
चयन विषय का फिर किया।
समिधा भावों की जली,
तब ऐसे कविता पली।

नौ रस की धारा बहे,
अनुभव अपना सब कहे।
लेकिन जो हिय छू रहा,
कविमन उस रस में बहा।

सुमधुर सरगम ताल पर,
समुचित लय मन ठान कर।
शब्द सजाये परख के,
गा-गा देखा हरख के।

अलंकार श्रृंगार से,
काव्य तत्व की धार से।
पा नव जीवन खिल गयी,
पूर्ण हुई कविता नयी।
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प्रदोष छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)

यह 13 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

अठकल+त्रिकल+द्विकल =13 मात्रायें

अठकल यानी 8 में दो चौकल (4+4) या 3-3-2 हो सकते हैं। (चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।)
त्रिकल 21, 12, 111 हो सकता है तथा द्विकल 2 या 11 हो सकता है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

9 Responses

  1. वाह!
    कविता लिखना सिखाने वाली कविता।
    शुचिता वहन आपको हार्दिक नमन।

  2. शुचिता बहन कवि हृदय नव सृजन की एक एक कड़ी संजोते हुये किस प्रकार धैर्य के साथ अपनी नयी कविता पूर्ण करता है, इसका इस मधुर छंद में बहुत सुंदर तरीके से वर्णन हुआ है। इस रचना की बहुत बहुत बधाई।

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