बादल दादा दादी जैसे,
‘कुकुभ छंद’
श्वेत, सुनहरे, काले बादल, आसमान पर उड़ते हैं।
धवल केश दादा-दादी से, मुझे दिखाई पड़ते हैं।।
मन करता बादल मुट्ठी में, भरकर अपने सहलाऊँ।
रमी हुई ज्यूँ मैं दादी के , केशों का सुख पा जाऊँ।।
रिमझिम बरसा जब करते घन, नभ पर नाच रहे मानो।
दादी मेरी पूजा करके, जल छिड़काती यूँ जानो।।
काली-पीली आँधी आती, झर-झर बादल रोते हैं।
गुस्से में जब होती दादी, बिल्कुल वैसे होते हैं।।
बड़े जोर से उमड़ घुमड़ जब, बादल गड़गड़ करते हैं।
दादी पर दादाजी मेरे, ऐसे बड़बड़ करते हैं।।
डरा डरा कर बिजली जैसे, चमके और कड़कती है।
वैसे ही दादी तब मेरी, सुध बुध खोय भड़कती है।।
चम चम करते चाँदी से घन, कभी हिलोरे लेते हैं।
मैं दौडूं तो साथ हमेशा, बादल मेरा देते हैं।
आसमान में विचरण करना, ज्यूँ बादल को आता है।
दादा-दादी के साये में, रहना मुझको भाता है।।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत सुंदर कुकुभ छंद की कविता।
हार्दिक आभार आपका।
शुचिता बहन बादलों की दादा दादी से तुलना करती प्यारी बाल कविता।
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का दिल से आभार भैया।