बिहारी छंद
“प्रेम भाव”
मैं प्रेम भरे गीत सजन, आज सुनाऊँ।
उद्गार सभी झूम रहे, शब्द सजाऊँ।।
मैं चाह रही प्रीत भरा, कोश लुटाना।
संसार लगे आज मुझे, सौम्य सुहाना।।
रमणीक लगे बाग हरे, खेत लहकते।
घन घूम रहे मस्त हुए, फूल महकते।।
हर ओर प्रकृति झूम करे, नृत्य निराला।
सब अंध हुआ दूर गया, फैल उजाला।
जब आस भरे नैन विकल, रुदन करेंगे।
सिंदूर लिये हाथ सजन, माँग भरेंगे।।
मैं प्रेम भरे रंग भरूँ, विरह अगन में।
इठलाय रही नाच रही, आज लगन में।।
उम्मीद भरे भाव सुमन, खूब खिले हैं।
संकल्प तथा लक्ष्य भरे, पंख मिले हैं।।
उल्लास भरी राग मधुर, खास बजाऊँ।
अरमान भरी सेज सजन, नित्य सजाऊँ।।
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बिहारी छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)
यह (221 1221 12, 21 122) मापनी पर आधारित 22 मात्रा का मात्रिक छंद है। छंद का पद 14 और 8 मात्रा के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है। चूंकि यह एक मात्रिक छंद है अतः गुरु (2) वर्ण को दो लघु (11) में तोड़ने की छूट है। दो दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिए।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बिहारी छंद में बहुत सुंदर कविता।
हार्दिक आभार जी
हार्दिक आभार भैया।
शुचिता बहन बिहारी छंद में प्रेम विभोर नायिका की मनोस्थिति का सुंदर वर्णन।