बुदबुद छंद
“बसंत पंचमी”
सुखद बसंत पंचमी।
पतझड़ शुष्कता थमी।।
सब फिर से हरा-भरा।
महक उठी वसुंधरा।।
विटप नवीन पर्ण में।
कुसुम अनेक वर्ण में।।
खिल कर झूमने लगे।
यह लख भाग्य ही जगे।।
कुहुक सुनाय कोयली।
गरजत मन्द बादली।।
भ्रमर-गुँजार छा रही।
सरगम धार सी बही।।
शुभ ऋतुराज आ गया।
अनुपम चाव छा गया।।
कलरव दिग्दिगंत में।
मुदित सभी बसंत में।।
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बुदबुद छंद विधान –
“नजर” सु-वर्ण नौ रखें।
‘बुदबुद’ छंद को चखें।।
“नजर” = नगण, जगण, रगण
(111 121 212) = 9 वर्ण का वर्णिक छंद, 4 चरण दो-दो चरण समतुकांत
लिंक:- वर्णिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल नमन ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
बसन्त पंचमी पर वसुंधरा के अनुपम सौंदर्य का बहुत ही सुंदर वर्णन हुआ है।
शुचिता बहन मन हर्षित करती तुम्हारी भावभीनी प्रतिक्रिया का धन्यवाद।
इस प्यारी छंद में बसंत ॠतु का बड़ा मनोहारी वर्णन हुआ है।
आपकी टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद।