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बृहत्य छंद आधारित

“सावन का सोमवार गीतिका”

मधुर मास सावन लगा है,
दिवस सोम पावन पड़ा है।

महादेव को सब रिझाएँ,
उसीका सभी आसरा है।

तेरा रूप सबसे निराला,
गले सर्प माथे जटा है।

सजे माथ चंदा ओ गंगा,
सवारी में नंदी सजा है।

कुसुम बिल्व चन्दन चढ़ाएँ,
ये शुभ फल का अवसर बना है।

शिवाले में अभिषेक जल से,
करें भक्त मोहक छटा है।

करें कावड़ें तुझको अर्पित,
सभी पुण्य पाते महा है।

करो पूर्ण आशा सभी शिव,
‘नमन’ हाथ जोड़े खड़ा है।
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बृहत्य छंद विधान (वर्णिक छंद परिभाषा)

बृहत्य छंद 9 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छन्द है जिसका वर्ण विन्यास 122*3 है। इस चार चरणों के छंद में 2-2 अथवा चारों चरणों में समतुकांतता रखी जाती है।

यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में गुरु वर्ण (2) को लघु+लघु (11) में तोड़ने की तथा उच्चारण के अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट रहती है। (वाचिक स्वरूप)

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

6 Responses

  1. सावन के प्रथम सोमवार के पावन दिवस पर भगवान शिव की महिमा में रची शानदार गजल गीतिका को मेरा नमन।

  2. सावन मास के सोमवार की विशेष महत्ता पर रचित गीतिका बहुत ही प्रभावशाली है।
    बृहत्य वर्णिक छंद में सुंदर भावाभिव्यक्ति हुई है।
    शिल्प,भाषा एवं शब्द चयन बेजोड़ है। छंद की लय सुमधुर है।
    विधान में इसके वाचिक स्वरूप की उत्तम जानकारी आपने प्रदान की है।
    हार्दिक बधाई।

    1. शुचिता बहन ऐसी समसामयिक छंद बद्ध रचना सृजन करने के प्रति हृदय में नव उत्साह का संचार करती तुम्हारी मधुर प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद।

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