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मंगलवत्थु छंद

‘अयोध्या वापसी’

घर आये श्री राम, आज खुशियाँ बरसी।
घन, अम्बर, पाताल, सकल धरती सरसी।।
सजे हुये घर द्वार, सजे सब नर-नारी।
झिलमिल जलते दीप, सजी नगरी सारी।।

शंखनाद चहुँ ओर, ढोल, डमरू गाजे।
जयकारे की गूँज, गीत मंगल बाजे।।
राम, लखन, सिय साथ, घड़ी अभिनंदन की।
उमड़ी खुशियाँ आज, गई रुत क्रंदन की।।

आँगन में सुकुमार, मात ममता उमड़ी।
आँखों में जलधार, घटा हिय में घुमड़ी।।
रात अमावश धन्य, पुण्य की भागी है।
बन पूनम की रात, चन्द्र सी जागी है।।

छाया भगवा रंग, राममय नर नारी।
बच्चा बच्चा राम, धन्य धरती सारी।।
गीतों में है राम, नृत्य रामायण है।
रोम रोम में हर्ष, बसे नारायण है।।

दीवाली है आज, दीप घर घर दमके।
जगमग ‘शुचि’ साकेत, तीर सरयू चमके।।
राम राम बस राम, राम ध्वज फहराया।
जागे अपने भाग्य, राम युग है आया।।

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मंगलवत्थु छंद विधान-

मंगलवत्थु छंद 22 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 21, 3 2222
11 +11 = 22 मात्राएँ

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।
अठकल के नियम अनुपालनिय है।
इस छंद को रोली छंद के नाम से भी जाना जाता है।

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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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