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मंगलवत्थु छंद

‘अयोध्या वापसी’

घर आये श्री राम, आज खुशियाँ बरसी।
घन, अम्बर, पाताल, सकल धरती सरसी।।
सजे हुये घर द्वार, सजे सब नर-नारी।
झिलमिल जलते दीप, सजी नगरी सारी।।

शंखनाद चहुँ ओर, ढोल, डमरू गाजे।
जयकारे की गूँज, गीत मंगल बाजे।।
राम, लखन, सिय साथ, घड़ी अभिनंदन की।
चौदह वर्षों बाद, गई रुत क्रंदन की।।

आँगन में सुकुमार, मात ममता उमड़ी।
आँखों में जलधार, घटा हिय में घुमड़ी।।
त्रय माता को देख, राम-सिय सुख पाये।
महावीर हनुमान, देख कुल हरषाये।।

रात अमावश धन्य, पुण्य की भागी है।
बन पूनम की रात, चन्द्र सी जागी है।।
जगमग ‘शुचि’ साकेत, तीर सरयू चमके।
यह दीवाली पर्व, युगों से है दमके।।

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मंगलवत्थु छंद विधान-

मंगलवत्थु छंद 22 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 21, 3 2222
11 +11 = 22 मात्राएँ

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।
अठकल के नियम अनुपालनिय है।
इस छंद को रोली छंद के नाम से भी जाना जाता है।

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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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