मंदाक्रान्ता छंद
विषय-जागो-जागो
सिद्धा वाणी,सरस रहती,दूर होता अँधेरा।
त्यागो आपा,मन वचन से,प्राप्त हो सिद्ध डेरा।।
कल्याणी है,वचन सब ये,वेद सारे बताते।
मिथ्या गाने,दुखद जग के,लोग गा-गा सुनाते।।
सारे भोगी,जन जगत के,लोभ में मान खोते।
धारा में हो,विवश बहते,अश्रु ही अश्रु रोते।।
अज्ञानी हैं,नमन करना,दूर से पाँव छूना।
लूले हैं ये,डगर चलते,घाव दें नित्य दूना।।
इच्छा त्यागो,इस जगत की,प्रेम में जाग जाओ।
रोता देखे,जगत हँसता,प्रेम के गीत गाओ।
जागो-जागो,जगत भ्रम है,राम साथी तुम्हारे।
गाओ गाने,सुमन मन से,राम के ही सहारे।।
वाणी बोलो,सुनकर जिसे,काल भी जाग जाए।
आगे आओ,सुरभि जग के,नाम बाँटो सुहाए।।
आभा फैले,धरणि तल में,गान पंछी सुनाएँ।
प्रातः जागे,सब जन जगें,सौख्य का सार पाएँ।।
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मंदाक्रान्ता छंद विधान के लिए:- लिंक
बाबा कल्पनेश
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश,पिन-249304
Kalpnesh
नाम-बैजनाथ मिश्र
प्रचलित नाम-बाबा कल्पनेश
जन्मस्थान-सारंगापुर-प्रयागराज-उत्तर प्रदेश
माता-स्वर्गीया हुबराजी देवी
पिता-स्वर्गीय पंडित रामजतन मिश्र
शिक्षा-साहित्याचार्य
प्रकाशित पुस्तकें-श्री गुरुचालीसा,श्री सिद्ध बाबा चालीसा,संघर्ष के बीज (काव्य संग्रह),आत्मकथा है मस्ती(कविता संग्रह)उत्तराखंड संस्कृत निदेशालय द्वारा प्रकाशित,मनुजता की नव पाठशाला।
कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।पत्र-प्रतिकाओं में कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
वर्तमान में
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश में रहकर स्वतंत्र साहित्य साधना।
मधुर वाणी की महिमा दर्शाती सुंदर रचना।
आदरणीय बाबा कल्पनेश जी सनातन संस्कृति का संदेश देती, सुवचनों से नव जागृति का आह्वान करती सुंदर रचना।
जीने की सही एवं सार्थक राह दिखाती अनुकरणीय रचना आदरणीय बाबा कल्पनेश जी।