मंदाक्रान्ता छंद
विषय-साध्य की खींच रेखें
गाना होता,मगन मन से,राम का नाम प्यारे।
आओ गाएँ,हम-तुम सभी,त्याग दें काम सारे।।
मिथ्या जानो,जगत भर के,रूप-लावण्य पाए।
वेदों के ये,वचन पढ़ के,काव्य के छंद गाए।।
भीगी आँखें,रुदन करतीं,कौन देखे बताओ।
आओ-आओ,किरन कहती,पीर भारी मिटाओ।।
देखा-देखी,भ्रम रत सभी,काम के बीज बोते।
भारी पीड़ा,हृदय भर के,आप ही आप ढोते।।
काँटा जानो,बरबस मिली,जो सुहानी लुभाती।
मुठ्ठी तानो,गरल सम जो,खाज सी है सुहाती।।
रोगी होना,रुदन करना,रक्त ही है बहाना।
आँसू खारे,नयन भर के,भोगना जेल खाना।।
जागो-जागो,मनमथ तजो,रुग्ण क्यों आप होते।
मिथ्या जो है,दुख मय सभी,क्लेश के बीज बोते।।
प्रातः होते,रवि किरन है,रूप खोले सुहाती।
आओ ले लो,इस हृदय की, सौंपती आज थाती।।
श्यामा-श्यामा,भजन करना,है तभी मौज जानो।
मिथ्या है जो,इस क्षण तजो,पाप ही पाप मानो।।
कल्याणी हैं,जगत जननी,अंक के छाँव लेतीं।
राधा रानी,मगन जब हों,सौख्य का दान देतीं।।
वंशी बाजे,श्रवण करके,राधिका दौड़ देखें।
साथी मेरे,दृढ़ मन धरो,साध्य की खींच रेखें।
गीता वाणी,मनन करना,लक्ष्य को सिद्ध जानो।
देखो-देखो,हरि चरण में,शाँति को प्राप्त मानो।।
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विधान – –> लिंक
बाबा कल्पनेश

Kalpnesh
नाम-बैजनाथ मिश्र
प्रचलित नाम-बाबा कल्पनेश
जन्मस्थान-सारंगापुर-प्रयागराज-उत्तर प्रदेश
माता-स्वर्गीया हुबराजी देवी
पिता-स्वर्गीय पंडित रामजतन मिश्र
शिक्षा-साहित्याचार्य
प्रकाशित पुस्तकें-श्री गुरुचालीसा,श्री सिद्ध बाबा चालीसा,संघर्ष के बीज (काव्य संग्रह),आत्मकथा है मस्ती(कविता संग्रह)उत्तराखंड संस्कृत निदेशालय द्वारा प्रकाशित,मनुजता की नव पाठशाला।
कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।पत्र-प्रतिकाओं में कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
वर्तमान में
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश में रहकर स्वतंत्र साहित्य साधना।
बहूत प्यारी शिक्षाप्रद रचना।
आदरणीय बाबा कल्पनेश जी सर्वप्रथम कविकुल पर आपका हार्दिक अभिनंदन करती हूँ।
आपकी रचना सुंदर जीवन की सुशिक्षा देती बहुत ही ज्ञानवर्धक है।
बधाई
आदरणीय बाबा कल्पनेश जी मंदाक्रान्ता जैसी श्रम साध्य सनातन छंद में साध्य की साधना हेतु अनेक उपायों का दिग्दर्शन कराती सीख से भरी आपकी इस रचना को नमन।
कविकुल में आपके जुड़ने का हार्दिक स्वागत है। हिन्दी के विशाल छंद के खजाने से पाठकों का उत्तम रचनाओं और छंद के पूर्ण विधान से परिचय कराना इस वेब साइट का उद्देश्य है। आपका सानिध्य पाकर पाठक वृंद धन्य हैं।