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मलयज छंद

“प्रभु-गुण”

सुन मन-मधुकर।
मत हिय मद भर।।
करत कलुष डर।
हरि गुण उर धर।।

सरस अमिय सम।
प्रभु गुण हरदम।।
मन हरि मँह रम।
हर सब भव तम।।

मन बहुत विकल।
हलचल प्रतिपल।।
पड़त न कछु कल।
हरि-दरशन हल।।

प्रभु-शरण लखत।
यह सर अब नत।।
तव चरण पड़त।
रख नटवर पत।।
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मलयज छंद विधान –

“ननलल” लघु सब।
‘मलयज’ रच तब।।

“ननलल” = नगण नगण लघु लघु।
111 111 11 = 8 लघु वर्ण का वर्णिक छंद, 4 चरण, दो दो समतुकांत।

वर्णिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
19-01-17

4 Responses

  1. पूरी लघु वर्णों पर लिखी कविता हरि भक्ति को बहुत सुंदर ढंग से दर्शा रही है।

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