मानव छंद
“नारी की व्यथा”
आडंबर में नित्य घिरा।
नारी का सम्मान गिरा।।
सत्ता के बुलडोजर से।
उन्मादी के लश्कर से।।
रही सदा निज में घुटती।
युग युग से आयी लुटती।।
सत्ता के हाथों नारी।
झूल रही बन बेचारी।।
मौन भीष्म भी रखे जहाँ।
अंधा है धृतराष्ट्र वहाँ।।
उच्छृंखल हो राज-पुरुष।
करते सारे पाप कलुष।।
अधिकारी सारे शोषक।
अपराधों के वे पोषक।।
लूट खसोट मची भारी।
दिखे व्यवस्था ही हारी।।
रोग नशे का फैल गया।
लुप्त हुई है हया दया।।
अपराधों की बाढ जहाँ।
ऐसे में फिर चैन कहाँ।।
बने हुये हैं जो रक्षक।
वे ही आज बड़े भक्षक।।
हर नारी की घोर व्यथा।
पंचाली की करुण कथा।।
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मानव छंद विधान: (मात्रिक छंद परिभाषा)
मानव छंद 14 मात्रिक चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। तुक दो दो चरण की मिलाई जाती है। 14 मात्रा की बाँट 12 2 है। 12 मात्रा में तीन चौकल हो सकते हैं, एक अठकल एक चौकल हो सकता है या एक चौकल एक अठकल हो सकता है।
मानव छंद में ही किंचित परिवर्तन से मानव जाति के दो और छंद हैं।
4*2 211S = हाकलि छंद जो दो चौकल भगण और दीर्घांत से बनता है।
4*2 2SS = सखी छंद जो दो चौकल द्विकल और अंत में दो दीर्घ वर्ण से बनता है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' © तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
नारी सम्मान पर सुंदर कविता।
प्रतिक्रिया का हृदयतल.से आभार।
नारी उत्कंठा का सटीक वर्णन भैया।
धन्यवाद शुचि बहन।