Categories
Archives

मानव छंद

“नारी की व्यथा”

आडंबर में नित्य घिरा।
नारी का सम्मान गिरा।।
सत्ता के बुलडोजर से।
उन्मादी के लश्कर से।।

रही सदा निज में घुटती।
युग युग से आयी लुटती।।
सत्ता के हाथों नारी।
झूल रही बन बेचारी।।

मौन भीष्म भी रखे जहाँ।
अंधा है धृतराष्ट्र वहाँ।।
उच्छृंखल हो राज-पुरुष।
करते सारे पाप कलुष।।

अधिकारी सारे शोषक।
अपराधों के वे पोषक।।
लूट खसोट मची भारी।
दिखे व्यवस्था ही हारी।।

रोग नशे का फैल गया।
लुप्त हुई है हया दया।।
अपराधों की बाढ जहाँ।
ऐसे में फिर चैन कहाँ।।

बने हुये हैं जो रक्षक।
वे ही आज बड़े भक्षक।।
हर नारी की घोर व्यथा।
पंचाली की करुण कथा।।

=============
मानव छंद विधान: (मात्रिक छंद परिभाषा)

मानव छंद 14 मात्रिक चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। तुक दो दो चरण की मिलाई जाती है। 14 मात्रा की बाँट 12 2 है। 12 मात्रा में तीन चौकल हो सकते हैं, एक अठकल एक चौकल हो सकता है या एक चौकल एक अठकल हो सकता है।

मानव छंद में ही किंचित परिवर्तन से मानव जाति के दो और छंद हैं।

(1) हाकलि छंद विधान – हाकलि छंद मानव जाति का 14 मात्रिक छंद है। इसमें दो चौकल भगण और दीर्घांत रहता है। इसका मात्रा विन्यास 4*2 211S है। हाकलि छंद का मेरा एक मुक्तक देखें:-

“सदियों तक यह अश्रु बहा,
रघुवर का वनवास सहा,
मंदिर की अब नींव पड़ी,
सारा भारत झूम रहा।”

(2) सखी छंद विधान – सखी छंद मानव जाति का 14 मात्रिक छंद है। यह दो चौकल द्विकल और अंत में दो दीर्घ वर्ण से बनता है। इसका मात्रा विन्यास 4*2 2SS है। सखी छंद का मेरा एक मुक्तक देखें:-

“सावन की हरियाली है,
शोभा अति मतवाली है,
भ्रमरों की गूंजन छायी,
चहुँ दिशि में खुशियाली है।”

*****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

4 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *