मुक्तामणि छंद
“गणेश वंदन”
मात पिता शिव पार्वती, कार्तिकेय गुरु भ्राता।
पुत्र रत्न शुभ लाभ हैं, वैभव सकल प्रदाता।।
रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज-कर से मुख सोहे।
काया बड़ी विशाल जो, भक्त जनों को मोहे।।
भाद्र शुक्ल की चौथ को, गणपति पूजे जाते।
आशु बुद्धि संपन्न ये, मोदक प्रिय कहलाते।।
अधिपति हैं जल-तत्त्व के, पीत वस्त्र के धारी।
रक्त-पुष्प से सोहते, भव-भय सकल विदारी।।
सतयुग वाहन सिंह का, अरु मयूर है त्रेता।
द्वापर मूषक अश्व कलि, हो सवार गण-नेता।।
रुचिकर मोदक लड्डुअन, शमी-पत्र अरु दूर्वा।
हस्त पाश अंकुश धरे, शोभा बड़ी अपूर्वा।।
विद्यारंभ विवाह हो, गृह-प्रवेश उद्घाटन।
नवल कार्य आरंभ हो, या फिर हो तीर्थाटन।।
पूजा प्रथम गणेश की, संकट सारे टारे।
काज सुमिर इनको करो, विघ्न न आए द्वारे।।
भालचन्द्र लम्बोदरा, धूम्रकेतु गजकर्णक।
एकदंत गज-मुख कपिल, गणपति विकट विनायक।।
विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश।
रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।
ग्रन्थ महाभारत लिखे, व्यास सहायक बन कर।
वरद हस्त ही नित रहे, अपने प्रिय भक्तन पर।।
मात पिता की भक्ति में, सर्वश्रेष्ठ गण-राजा।
‘बासुदेव’ विनती करे, सफल करो सब काजा।।
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मुक्तामणि छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)
दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के।
‘मुक्तामणि’ प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।
मुक्तामणि छंद चार पदों का 25 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 13 और 12 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। 13 मात्रिक चरण ठीक दोहे वाले विधान का होता है। दो दो पद समतुकांत होते हैं। मात्रा बाँट:
विषम चरण- 8+3 (ताल)+2 कुल 13 मात्रा।
सम चरण- 8+2+2 कुल 12 मात्रा।
अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं।द्विकल के दोनों रूप (1 1 या 2) मान्य हैं। यह छंद पदांत
में दो दीर्घ (SS) रखने से कर्णप्रिय लगता है जो कुछ ग्रंथों में विधान के अंतर्गत भी है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
गणेश चतुर्थी के पावन दिवस पर भगवान गणेश के श्री चरणों में अर्पित।
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
ढूंढ़ते मुक्तामणि को, मिली खान मणि-मुक्ता।
कविराज ‘बासुदेव’ हैं, उपनाम ‘नमन’ पुख्ता।।
काव्य रग रग रचे बसे, अग्रवाल लिख गाते।
शारदे की कृपा सदा, सरस छंद बरसाते।।
वासुदेव दाधीच जी, प्रतिक्रिया मन भायी।
जुड़िए कविकुल मंच से, काव्य रचें सुखदायी।
आपकी रचना में गणेशजी को विषय में बहुत ही विषद जानकारी मिलती है। नमन आपके ज्ञान को।
आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद।
वाहः रचना की हर पंक्ति आपके काव्य कौशल एवं ज्ञान को दर्शाती है।विघ्नविनायक पर अति प्रसंसनीय,संग्रहणीय रचना जिसकी जितनी भी प्रसंसा करूँ कम ही होगी।
“रिद्धि सिद्धि के नाथ पर, छंद प्रेम बरसाया।
रचकर मुक्तामणि मधुर, सबका मन हर्षाया।।
नमन आपके ज्ञान को, शब्दकोष के ज्ञाता।
लेखन कविवर आपका, अतिशय मुझको भाता।।”
वाह क्या कहने कामेंट के।
शुचिता बहन तुम्हारी मुक्तामणि छंद में रचित स्नेह सिंचित प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ। तुम्हारा हार्दिक धन्यवाद।