योग छंद
“विजयादशमी”
अच्छाई जब जीती, हरा बुराई।
जग ने विजया दशमी, तभी मनाई।।
जयकारा गूँजा था, राम लला का।
हुआ अंत धरती से, दुष्ट बला का।।
शक्ति उपासक रावण, महाबली था।
ग्रसित दम्भ से लेकिन, बहुत छली था।
कूटनीति अपनाकर, सिया चुराई।
हर कृत्यों में उसके, छिपी बुराई।।
नहीं धराशायी हो, कभी सुपंथी।
सर्व नाश को पाये, सदा कुपंथी।
चरम फूट पापों का, सदा रहेगा।
कब तक जग रावण के, कलुष सहेगा।।
मानवता की खातिर, शक्ति दिखाएँ।
जग को सत्कर्मों की, भक्ति सिखाएँ।।
राम चरित से जीवन, सफल बनाएँ।
धूम धाम से हम सब, पर्व मनाएँ।।
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योग छंद विधान –
योग छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद 20 मात्रा रहती हैं। पद 12 और 8 मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहता है। 12 मात्रिक प्रथम चरण में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है।
इसकी तीन संभावनाएँ हैं जो तीन चौकल, चौकल + अठकल और अठकल + चौकल
के रूप में है।
8 मात्रिक दूसरे चरण का विन्यास निम्न
है –
त्रिकल, लघु, तथा दो दीर्घ वर्ण (SS) = 3+1+4 = 8
त्रिकल के तीनों (12, 21, 111) रूप मान्य है।
दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
आपने दशहरा त्योहार पर बहुत सार्थक छंद रचा है।
।।जय माँ जगदंबा।।
जय माँ दुर्गा।
भैया, आपके सानिध्य से ही सब संभव है।
अपना आशीर्वाद बनाएं रखें।
उत्साहवर्धन हेतु अतिशय आभार।
शुचिता बहन इस नये कठिन ‘योग छंद’ में विजयादशमी के ऊपर तुमने बहुत भावपूर्ण सृजन किया है। माँ जगदंबा की तुम पर कृपा है और तुम कविकुल वेबसाइट के माध्यम से यूँ ही नये नये छंदों से परिचय कराते रहना।