रक्ता छंद
“शारदा वंदन”
ब्रह्म लोक वासिनी।
दिव्य आभ भासिनी।।
वेद वीण धारिणी।
हंस पे विहारिणी।।
शुभ्र वस्त्र आवृता।
पद्म पे विराजिता।।
दीप्त माँ सरस्वती।
नित्य तू प्रभावती।।
छंद ताल हीन मैं।
भ्रांति के अधीन मैं।।
मन्द बुद्धि को हरो।
काव्य की प्रभा भरो।।
छंद-बद्ध साधना।
काव्य की उपासना।
मैं सदैव ही करूँ।
भाव से इसे भरूँ।।
मात ये विचार हो।
देश का सुधार हो।।
ज्ञान का प्रसार हो।
नष्ट अंधकार हो।।
शारदे दया करो।
ज्ञान से मुझे भरो।।
काव्य-शक्ति दे मुझे।
दिव्य भक्ति दे मुझे।।
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रक्ता छंद विधान – लिंक–> (वर्णिक छंद परिभाषा)
[रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 ) = 7 वर्ण की वर्णिक छंद, 4 चरण
[दो-दो या चारों चरण समतुकांत]
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बासुदेव अग्रवाल नमन, ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
रक्ता छंद में माँ शारदा की बहुत सुंदर वंदना।
आपकी मधुर प्रतिक्रिया का अतीव धन्यवाद।
माँ सरस्वती की अनुपम वंदना हुई है।
भावों से सुसज्जित अति सुंदर रचना भैया।
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय खिलाती टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।