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रक्ता छंद

“शारदा वंदन”

ब्रह्म लोक वासिनी।
दिव्य आभ भासिनी।।
वेद वीण धारिणी।
हंस पे विहारिणी।।

शुभ्र वस्त्र आवृता।
पद्म पे विराजिता।।
दीप्त माँ सरस्वती।
नित्य तू प्रभावती।।

छंद ताल हीन मैं।
भ्रांति के अधीन मैं।।
मन्द बुद्धि को हरो।
काव्य की प्रभा भरो।।

छंद-बद्ध साधना।
काव्य की उपासना।
मैं सदैव ही करूँ।
भाव से इसे भरूँ।।

मात ये विचार हो।
देश का सुधार हो।।
ज्ञान का प्रसार हो।
नष्ट अंधकार हो।।

शारदे दया करो।
ज्ञान से मुझे भरो।।
काव्य-शक्ति दे मुझे।
दिव्य भक्ति दे मुझे।।

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रक्ता छंद विधान – लिंक–>  (वर्णिक छंद परिभाषा)

[रगण जगण गुरु]
( 212 121 2 ) = 7 वर्ण की वर्णिक छंद, 4 चरण
[दो-दो या चारों चरण समतुकांत]
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बासुदेव अग्रवाल नमन, ©
तिनसुकिया

4 Responses

  1. माँ सरस्वती की अनुपम वंदना हुई है।
    भावों से सुसज्जित अति सुंदर रचना भैया।

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