Categories
Archives

रमणीयक छंद

“कृष्ण महिमा”

मोर पंख सर पे कर में मधु बाँसुरी।
पीत वस्त्र कटि में कछनी अति माधुरी।।
ग्वाल बाल सँग धेनु चरावत मोहना।
कौन नित्य नहिँ चाहत ये छवि जोहना।।

दिव्य रूप मनमोहन का नर चाख ले।
नाम-जाप रस को मन में तुम राख ले।।
कृष्ण श्याम मुरलीधर मोहन साँवरा।
एक नाम कछु भी जपले मन बावरा।।

मैं गँवार मति पाप-लिप्त अति दीन हूँ।
भोग और धन-संचय में बस लीन हूँ।।
धर्म आचरण का प्रभु मैं नहिँ विज्ञ हूँ।
भाव भक्ति अरु अर्चन से अनभिज्ञ हूँ।।

मैं दरिद्र शरणागत हो प्रभु आ गया।
हाथ थाम कर हे ब्रजनाथ करो दया।।
भीर कोउ पड़ती तुम्हरा तब आसरा।
कष्टपूर्ण भव-ताप हरो इस दास रा।।
===================

रमणीयक छंद विधान –

वर्ण राख कर पंच दशं “रनभाभरा”।
छंद राच ‘रमणीयक’ हो मन बावरा।।

“रनभाभरा” = रगण नगण भगण भगण रगण।
212 111 211 211 212 = 15 वर्ण का वर्णिक छंद। चार चरण, दो दो या चारों समतुकांत।

वर्णिक छंद परिभाषा
**********************

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

4 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *