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रसाल छंद

“यौवन”

यौवन जब तक द्वार, रूप रस गंध सुहावत।
बीतत दिन जब चार, नाँहि मन को कछु भावत।।
वैभव यह अनमोल, व्यर्थ मत खर्च इसे कर।
वापस कबहु न आय, खो अगर दे इसको नर।।

यौवन सरित समान, वेगमय चंचल है अति।
धीर हृदय मँह धार, साध नर ले इसकी गति।।
हो कर इस पर चूर, जो बढ़त कार्य बिगारत।
जो पर चलत सधैर्य, वो सकल काज सँवारत।।

यौवन सब सुख सार, स्वाद तन का यह पावन।
ये नित रस परिपूर्ण, ज्यों बरसता मधु सावन।।
दे जब तक यह साथ, सृष्टि लगती मनभावन।
जर्जर जब तन होय, घोर तब दे झुलसावन।।

कांति चमक अरु वीर्य, पूर्ण जब देह रहे यह।
मानव कर तु उपाय, पार भव हो जिनसे यह।।
रे नर जनम सुधार, यत्न करके जग से तर।
जीवन यह उपहार, व्यर्थ इसको मत तू कर।।
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रसाल छंद विधान –

“भानजभजुजल” वर्ण, और यति नौ दश पे रख।
पावन मधुर ‘रसाल’, छंद-रस रे नर तू चख।।

“भानजभजुजल” = भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु।
211 111 121 // 211 121 121 1 = 19 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 9 और 10 वर्ण पर, दो दो या चारों पद समतुकांत।

(इसका मात्राविन्यास रोला छंद से मिलता है। रसाल गणाश्रित छंद है अतः हर वर्ण की मात्रा नियत है जबकि रोला मात्रिक छंद है और ऐसा बन्धन नहीं है।)

वर्णिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
16-10-17

5 Responses

  1. जय गोविंदजी, लोसल की टिप्पणी
    5-4-19
    काव्य सम्मेलन

    लेखन चलत अमंद, भाव भर खूब लुभावत।
    पावन मधुर रसाल, छंद नित गान जु गावत।।
    धन्य नमन कविराय, नेह भर छंद रचावत।
    ज्ञान जु अनुपम तोर, भान नित नव्य करावत।

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