रुचिरा छंद “भक्ति मुक्तक”
राम रसायन के दाता, हनुमान सभी पर कृपा करें।
त्राहि-त्राहि के बोल सुनें, प्रभु अपना करतल वरद धरें।
कल्पनेश अति दीन-दुखी, नित यशस् आप का है गाता।
तनिक अनुग्रह ही करके, हरि इसके चित्त विकार हरें।1।
कितना निर्बल दीन-दुखी, अपने से जैसे हार गया।
अपना ही पतवार त्याग, यह बहता सरिता धार गया।
गह कर हाथ रखें स्वामी, तब जीवन निश्चय शेष बचे।
गुरुवर तनिक दया होवे , तब मिले सुखद भिंसार नया।2।
सुबह हुई फिर शाम हुई, यह जीवन सर-सर सरक रहा।
कार्य न कुछ भी हो पाता, दुख यही बड़ा अनकहा कहा।
कायरता का बोध जगे, नित सिर पर लदता जाता है।
हिय में हाहाकार मचा, मैं इसमें नित-प्रति रहा नहा।3।
कूड़ा कर्कट का संचय, क्षण में करके क्षण फेंक दिया।
नयन खुले या मुँदे हुए, जो मिला हुआ वह कहाँ जिया।
दृष्टि मुझे यह गुरुवर दें, भव आर-पार सब देख सकूँ।
प्रेम पान के बदले में, उल्लेख सकूँ जो जहर पिया।4।
हँसना-रोना व्यर्थ लगे, कुछ पास नहीं क्या खोना है।
माटी को पहचान लिया, तब चाँदी क्या है सोना है।
किसका करना था संग्रह, इसका तो उत्तर मिला नहीं।
मुझको कौन बताएगा, तब पछताना क्यों रोना है।5।
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रुचिरा छंद विधान – https://kavikul.com/रुचिरा-छंद-भाभी
बाबा कल्पनेश
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश, पिन-249304
Kalpnesh
नाम-बैजनाथ मिश्र
प्रचलित नाम-बाबा कल्पनेश
जन्मस्थान-सारंगापुर-प्रयागराज-उत्तर प्रदेश
माता-स्वर्गीया हुबराजी देवी
पिता-स्वर्गीय पंडित रामजतन मिश्र
शिक्षा-साहित्याचार्य
प्रकाशित पुस्तकें-श्री गुरुचालीसा,श्री सिद्ध बाबा चालीसा,संघर्ष के बीज (काव्य संग्रह),आत्मकथा है मस्ती(कविता संग्रह)उत्तराखंड संस्कृत निदेशालय द्वारा प्रकाशित,मनुजता की नव पाठशाला।
कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।पत्र-प्रतिकाओं में कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं।
वर्तमान में
श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश में रहकर स्वतंत्र साहित्य साधना।
पाँचों मुक्तक मौक्तिक से खिले हुए। बधाई।
आदरणीय बाबा श्री कल्पनेश जी हृदय निर्मल करता आपकी यह भजन कविता “भक्ति मुक्तक”पढ़कर मन आनंदित हो गया। आपको हार्दिक प्रणाम।