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लावणी छंद

‘एक चिट्ठी माँ के नाम’

लिखने बैठी माँ को चिट्ठी, हाल सभी बतलाती है।
नन्हे मन की अति व्याकुलता, खोल हृदय दिखलाती है।।

लिखती वो सब ठीक चल रहा, बदला कुछ यूँ खास नहीं।
एक नई माँ आयी है अब, दिखती बस तू ही न कहीं।
भाई छोटू भी आया है, सबका राज दुलारा है।
कहती है दादी यह अक्सर, वो घर का उजियारा है।।

नये खिलौने अब भी आते, कपड़े नित नव आते हैं।
छोटू के सब नये खिलौने, माँ मुझको भी भाते हैं।।
मेरे बदले स्कूटर पर अब, बैठे भाई नित आगे।
प्यार याद आता है तेरा, रोती हूँ जागे-जागे।।

दौड़-दौड़ कर तब तू मुझको, अपने पास बुलाती थी।
खूब बहाने नये बनाकर, खाना मुझे खिलाती थी।।
तंग बहुत करती थी तुमको, लेकिन अब मैं सुधर गई।
सारे घर के काम सीखती, जब से तुम हो उधर गई।।

विद्यालय भी अक्सर अब तो, कम ही जाना पड़ता है।
वरना छोटू खेलन खातिर, मुझसे खूब झगड़ता है।।
पढ़ने को तुम डाँटा करती, लेकिन यह माँ अच्छी है।
तुम झूठी जो छोड़ गई हो, लगता यह माँ सच्ची है।।

पापा भी अक्सर मुझको अब, भूल रात में जाते हैं।
लोरी,झप्पी,गीत,कहानी, कहाँ सुनाने आते हैं।।
काश सितारा साथ बनाकर, मुझको भी तुम ले जाती।
चंदा मामा के घर मैं भी, बनी दुलारी रह पाती।।

लावणी छंद विधान

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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