लावणी छंद (गीत)
‘दिल मेरा ही छला गया’
क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।।
तड़प रही थी एक बूंद को, सागर चलकर आया था।
प्यासे मन से ये मत पूछो, कितना तुमको भाया था।।
एक हृदय में आग धधकती, वो मेरे क्यूँ जला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।।
तार जुड़े फिर गये टूट भी, गीत अधूरे मेरे हैं।
साँसों की सरगम में मेरे, सुर सारे ही तेरे हैं।।
सदा संग रहने की आशा, क्यों कर मन में फला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी,बादल था वो चला गया।।
अक्सर ऐसा होते देखा, जो जाते कब आते हैं।
इंतजार में दिन कट जाते, आँख बरसती रातें हैं।।
छोड़ अधूरा जीवन मेरा, क्यों कर फिर वो भला गया।
उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।।
लावणी छंद विधान
◆◆◆◆◆◆
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
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लावणी छंद में प्यारा गीत।
हार्दिक आभार
शुचिता बहन नारी की विरह व्यथा पर बहुत मधुर गीत हुआ है।
उत्साहवर्धन हेतु आभार भैया।