लावणी छंद, पर्यायवाची कविता
पर्यायवाची शब्द याद करने का छंदबद्ध कविता के माध्यम से आसान उपाय-
एक अर्थ के विविध शब्द ही, कहलाते पर्याय सभी।
भाषा वाणी बोली की वे, कर देते हैं वृद्धि तभी।।
याद कराने इन शब्दों को, सीधा,सरल,सुबोध करें।
काव्य,पद्य,कविता से अपने, शब्दों का भंडार भरें ।।
फूल, कुसुम अरु पुष्प, सुमन हो, चन्दन, मलयज, मलयोद्भव।
उपासना, पूजा, आराधन, कृष्ण,मुरारी,मधु, माधव।।
अम्बा, दुर्गा, देवी,मैया, सरस्वती,वाणी,भाषा।
दया, कृपा, अनुकम्पा की है, चाह, कामना, अभिलाषा।।
लक्ष्मी, कमला, रमा, मंगला, गणपति, शिवसुत भी आओ।
आंजनेय, बजरंगबली, हनु, धन, दौलत, संपद लाओ।।
मुनि, सन्यासी, तपसी, योगी, विज्ञ, बुद्ध, पंडित, ज्ञानी।
गुरु, शिक्षक, व्याख्याता सारे, ब्रह्म, ईश, अंतर्यामी।।
सुरतरंगिणी, सुरसरि, गंगा, जो नवनीत, आज्य, घी, घृत है।
नद, सरि, सरिता, नदी, आपगा, अमिय, सुधा, मधु, अमृत है।।
सागर, अर्णव, जलनिधि, वारिधि, व्योम, गगन, अम्बर, नभ भी।
पर्वत, अचल, शैल, नग,भूधर, पूज्य, मान्य, श्रद्धेय सभी।।
बरखा, वर्षा, बारिश, रिमझिम, पवन, समीर, हवा बहती।
लता, वल्लरी, बेल झूम कर, वृक्ष, विटप, तरु पर रहती।।
बादल, बदरा, मेघ, पयोधर, पानी, नीर, सलिल भाये।
मछली, शफरी, मत्स्य ,मीन अरु, बेंग, भेक, मेंढक आये।।
कोकिल, कोयल, पिक, मधुगायन, भोर, प्रभात, सुबह गाये।
खग, पतंग, चिड़िया, अंडज, द्विज, नाचे, मटके, इतराये।।
कूल, किनारा, तट, कगार पर, कश्ती, नौका, नाव खड़ी।
नाविक, माँझी, केवट की अब, दिनचर्या भी दौड़ पड़ी।।
आम, रसाल, आम्र, अतिसौरभ, कमल, जलज, पंकज प्यारे।
पत्ता, किसलय, दल, कोंपल अरु, पेड़,वृक्ष, पादप न्यारे।।
भूतल, धरती, वसुधा पर जब, सूर्य, अरुण, दिनकर चमके।
जग,भूतल, दुनिया, भुव सारा, चारु, रम्य, सुंदर दमके।।
जनक, पिता, बापू, पितु प्यारे, माँ, जननी, माता प्यारी।
घरवाली, पत्नी, भार्या अरु, बहन, स्वसा, भगिनी न्यारी।।
पुत्र, तनय, सुत, नंदन, बेटा, आँख, नयन, दृग का तारा।
सुता, स्वजा, बिटिया, तनुजा से, हर्षित, मुदित ये जग सारा।।
तात, बंधु, भ्राता, भाई अरु, अंतरंग,साथी, सहचर।
प्रेम, प्यार, अनुराग, प्रीति से, महके सदन, भवन, गृह, घर।।
अकड़, गर्व, अभिमान, दर्प से, तिमिर, तमस, तम, अँधियारा।
खुश, आनंदित, हर्षित मन से, ज्योति, तेज, अरु उजियारा।।
पठन, पढ़ाई, परिशीलन से, बुद्धि, चेतना, मति जागे।
हो विख्यात,यशस्वी, नामी, डग,पद, चरण, कदम भागे।।
अनुनय, विनती, विनय, प्रार्थना, छात्र,शिष्य,अध्येता से।
‘शुचि’, पावन, निर्मल कविता को, याद, मनन कर दृढ़ता से।।
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, आसाम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
हार्दिक आभार आपका।
लावणी छंद में पर्यायवाची बहुत कुशलता से पिरोये गये हैं।
हार्दिक आभार आपका।
शुचिता बहन लावणी छंद में प्रतिदिन व्यवहार में आनेवाले शब्दों के पर्यायवाची शब्द तुमने बहुत सुघड़ता से पिरोये हैं।
प्रोत्साहन हेतु हृदय से आभार आपका भैया। बस आपका आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे भगवान से यही कामना है।