लावणी छंद
“राधा-कृष्ण”
लता, फूल, रज के हर कण में, नभ से झाँक रहे घन में।
राधे-कृष्णा की छवि दिखती, वृन्दावन के निधिवन में।।
राधा-माधव युगल सलोने, निशदिन वहाँ विचरते हैं।
प्रेम सुधा बरसाने भू पर, लीलाएँ नित करते हैं।।
छन-छन पायल की ध्वनि गूँजे, मानो राधा चलती हों।
या बाँहों में प्रिय केशव के, युगल रूप में ढलती हों।।
बनी वल्लरी लिपटी राधा, कृष्ण वृक्ष का रूप धरे।
चाँद सितारे बनकर चादर, निज वल्लभ पर आड़ करे।।
इतराये तितली अलि गूँजे, फूलों का रसपान करे।
कुहक पपीहा बेसुध नाचे, कोयल सुर अति तीव्र भरे।।
कोमल पंखुड़ियाँ खिल उठती, महक उठा मधुवन सारा।
नभ से नव किसलय पर गिरती, ओस बूँद की मृदु धारा।।
जग ज्वालाएं शांत सभी हों, दिव्य धाम वृन्दावन में।
परम प्रेम आनंद बरसता, कृष्ण प्रिया के आँगन में।।
दिव्य युगल के गीत जगत यह, अष्ट याम नित गाता है।
‘शुचि’ मन निर्मल है तो जग यह, कृष्णमयी बन जाता है।।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन लावणी छंद में तुमने निधि वन के पादप, विहग, जीव और कण कण में राधा माधव की दिव्य जोड़ी के रूप का जीवंत वर्णन किया है।
आपने रचना को मान दिया, धन्य हुआ लेखन।
हार्दिक आभार।
लावणी प्यारी छंद में ब्रज के कण कण में राधा माधव का अंकन बहुत सुंदर शब्दों में हुआ है।
हार्दिक आभार आपका।