वंशस्थ छंद
“शीत-वर्णन”
तुषार आच्छादित शैल खण्ड है।
समस्त शोभा रजताभ मण्ड है।
प्रचण्डता भीषण शीत से पगी।
अलाव तापें यह चाह है जगी।।
समीर भी है सित शीत से महा।
प्रसार ऐसा कि न जाय ही सहा।
प्रवाह भी है अति तीव्र वात का।
प्रकम्पमाना हर रोम गात का।।
व्यतीत ज्यों ही युग सी विभावरी।
हरी भरी दूब तुषार से भरी।।
लगे की आयी नभ को विदारके।
उषा गले मौक्तिक हार धार के।।
लगा कुहासा अब व्योम घेरने।
प्रभाव हेमंत लगा बिखेरने।।
खिली हुई धूप लगे सुहावनी।
सुरम्य आभा लगती लुभावनी।।
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वंशस्थ छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
“जताजरौ” द्वादश वर्ण साजिये।
प्रसिद्ध ‘वंशस्थ’ सुछंद राचिये।।
“जताजरौ” = जगण, तगण, जगण, रगण
121 221 121 212
(वंशस्थ छंद के प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते हैं।
दो दो या चारों चरण समतुकांत।)
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
वाह शानदार
आपका आत्मिक आभार।
शीत ऋतु पर अद्भुत रचना
यशस्वी तुम्हारी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद।
वाहः शीत ऋतु का मनोहारी वर्णन हुआ है।
अति सुंदर रचना।
शुचिता बहन तुम्हारी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।
वंशस्थ छंद में शीत ऋतु की पूरी छवि पटल पर उतार कर रख दी है। बहुत मनोहारी रचना।
आपकी हृदय खिलाती टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद।