वागीश्वरी सवैया
“दया”
दया का महामन्त्र धारो मनों में, दया से सभी को लुभाते चलो।
न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से, सभी को गले से लगाते चलो।
दयाभूषणों से सभी प्राणियों के, उरों को सदा ही सजाते चलो।
सताओ न थोड़ा किसी जीव को भी, दया की सुधा को बहाते चलो।
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वागीश्वरी सवैया विधान – (सवैया छंद विधान) <– लिंक
यह 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
यह सवैया यगण (122) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति तथा चरण के अंतमें लघु गुरु वर्ण जुड़ने से होती है। इसका संरचना लघु गुरु गुरु × 7 + लघु गुरु है।
(122 122 122 122 122 122 122 12)
सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं। फिर भी इसके चरण में 12 – 11 वर्ण के 2 यति खंड रखने से लय की सुगमता रहती है। क्योंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
वागीश्वरी सवैया छंद में दया की महिमा पर अति सुंदर रचना।
आपकी हर्षित करती प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।
वागीश्वरी सवैया छंद की विस्तृत जानकारी आपने कविकुल पर प्रेषित की है जो कि हमारे लिए बहुत ही लाभदायक है। प्रत्येक छंद के विधान को आप इतनी बारीकी से लिखते हो कि शंका की कोई गुंजाइश बाकी ही नहीं रह जाती है।
दया के मूलमंत्र को बखूबी आपने सवैया छंद में पिरोया है।
अति सुंदर।
शुचिता बहन मेरी वागीश्वरी सवैया की रचना को तुमसे अनुमोदन मिला, हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।