वाचिक स्वरूप :- (छंद)
वर्तमान में हिंदी में वाचिक स्वरूप में सृजन करने का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। वाचिक का स्वरूप तो वर्णिक है पर इसके सृजन में न तो वर्णों की संख्या का बंधन है और न ही मात्राओं का। इसमें उच्चारण की प्रमुखता है और इस आधार पर गुरु को दो लघु में भी तोड़ा जा सकता है और कहीं कहीं गुरु वर्ण को लघु रूप में भी लिया जा सकता है। वाचिक में रचे गये मेरे एक मुक्तक का उदाहरण जिसकी मापनी (221 1222)*2 है।
“पहचान ले’ नारी तू, ताकत जो’ छिपी तुझ में,
कारीगरी’ उसकी जो, सब ही तो’ सजी तुझ में,
मंजिल न को’ई ऐसी, तू पा न सके जिसको,
भगवान दिखे उसमें, ममता जो’ बसी तुझ में।”
रचना में चिन्हित कई स्थान पर दीर्घाक्षरों का लघुवत् उच्चारण है।
हिन्दी में विधाता (1222*4), सीता (2122*3 212), स्त्रग्विणी (212*4) जैसे कई छंद वाचिक मापनी में अधिक प्रसिद्ध हैं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन, ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
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कामेंट का बहुत बहुत आभार। यहाँ छंदों का प्रमाणिक ज्ञान और छंदों की उत्कृष्ट रचनाएँ आपको सदैव प्राप्त होगी।
उत्तम जानकारी प्रदान करता हुआ सउदाहरण विधान।
शुचिता बहन हृदयतल से धन्यवाद।