विधाता छंद आधारित
“कविकुल स्वागत गीतिका”
मई उणतीस का दिन है धरा अवतार तू कविकुल,
लगी इक्कीस की है सन् भरा हूँकार तू कविकुल।
किया जग तेरा अभिनन्दन तेरी जयकार गूँजी है,
बनेगा नव सृजनकर्ताओं का गलहार तू कविकुल।
नई बातें, विधायें, भाव सीखेंगे यहाँ कवि वृंद,
सभी के खोल रख देगा हृदय के द्वार तू कविकुल।
पटल तेरा सजाएँगे अनेकों शारदा के पूत,
बने साहित्यकारों का सुखद परिवार तू कविकुल,
तेरा गुण गा ‘नमन’ कवि धन्य अपने को समझता है,
सभी कवि वृंद को देगा सदा सत्कार तू कविकुल।
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विधाता छंद विधान: (वाचिक स्वरूप)
विधाता छंद 28 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 14 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है।। छंद चार चार पदों के खंड में रचा जाता है। छंद में 2-2 अथवा चारों पदों में समतुकांतता रखी जाती है।
संरचना के आधार पर विधाता छंद निश्चित वर्ण विन्यास पर आधारित मापनी युक्त छंद है। जिसकी मापनी 1222*4 है। इसमें गुरु (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है जो सदैव एक ही शब्द में साथ साथ रहने चाहिए।
यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में यति के भी कोई रूढ नियम नहीं है और उच्चारण अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट है।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
29.05.21
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
“पटल तेरा सजाएँगे अनेकों शारदा के पूत,
बने साहित्यकारों का सुखद परिवार तू कविकुल”
वाह तेरी जय हो कविकुल।
आपका आत्मिक धन्यवाद। कविकुल में आपकी अमूल्य टिप्पणियों का सदैव स्वागत है।
मई माह उणतीस तारीख,सन इक्कीश है अवतरन,
छन्द गुरु श्री बासुदेव जी,अग्रवाल उपनाम ‘नमन’
कविकुल की शुभ नींव रखी है,साहित्यिक उद्धार किया।
नवलेखन के स्वरचित सुंदर,भावों को विस्तार दिया।
वाह शुचि बहन बहुत आकर्षक अवतरण दिवस का अभिनंदन।