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विष्णुपद छंद

‘मंजिल पायेंगे’

आगे हरदम बढ़ने का हम, लक्ष्य बनायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।

नवल सपन आँखों में लेकर, हम सोपान चढ़ें।
कायरता की तोड़ हथकड़ी, हम निर्भीक बढ़ें।।
जोश भरे कदमों की आहट, सकल विश्व सुनले।
मानवता की रक्षा के हित, नेक राह चुनले।।
विश्व शांति के लिए साथ हम, दौड़ लगायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।

भारत का इतिहास सुनहरा, वीर सपूतों का।
राष्ट्रप्रेम जिन माताओं में, उनके पूतों का।।
वही रक्त नस-नस में सबके, अब भी भरा हुआ।
ले मशाल उठ बढ़ तू आगे, क्यूँ है डरा हुआ?
सबसे ऊँचा झंडा अपना, हम फहरायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।।

आजादी की कीमत हमने, पुरखों से जानी।
होता मेहनत का फल मीठा, बात सत्य मानी।।
कथनी करनी एक बनाकर, अडिग लक्ष्य चुनलें।
हम कर सकते,करना हमको, शुचि मन की सुनलें।।
नहीं किया जो काम किसी ने, हम कर जायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।

मात्रिक छंद परिभाषा

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शुचिता अग्रवाल ‘ शुचिसंदीप’

तिनसुकिया, असम

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