विष्णुपद छंद
‘मंजिल पायेंगे’
आगे हरदम बढ़ने का हम, लक्ष्य बनायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।
नवल सपन आँखों में लेकर, हम सोपान चढ़ें।
कायरता की तोड़ हथकड़ी, हम निर्भीक बढ़ें।।
जोश भरे कदमों की आहट, सकल विश्व सुनले।
मानवता की रक्षा के हित, नेक राह चुनले।।
विश्व शांति के लिए साथ हम, दौड़ लगायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।
भारत का इतिहास सुनहरा, वीर सपूतों का।
राष्ट्रप्रेम जिन माताओं में, उनके पूतों का।।
वही रक्त नस-नस में सबके, अब भी भरा हुआ।
ले मशाल उठ बढ़ तू आगे, क्यूँ है डरा हुआ?
सबसे ऊँचा झंडा अपना, हम फहरायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में,मंजिल पायेंगे।।
आजादी की कीमत हमने, पुरखों से जानी।
होता मेहनत का फल मीठा, बात सत्य मानी।।
कथनी करनी एक बनाकर, अडिग लक्ष्य चुनलें।
हम कर सकते,करना हमको, शुचि मन की सुनलें।।
नहीं किया जो काम किसी ने, हम कर जायेंगे।
चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।।
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शुचिता अग्रवाल ‘ शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन देशवासियों को अति उत्तम संदेश देती बहुत मनोहर रचना।
आपकी मधुर प्रतिक्रिया का दिल से धन्यवाद भैया।
बहुत सुंदर संदेश देती रचना।
हार्दिक आभार आपका।