शंकर छंद
‘नश्वर काया’
माटी में मिल जाना सबको, मनुज मत तू भूल।
काया का अभिमान बुरा है, बनेगी यह धूल।।
चले गये कितने ही जग से, नित्य जाते लोग।
बारी अपनी भी है आनी, अटल यह संयोग।।
हाड़-माँस का काया पुतला, बनेगा जब राख।
ममता, माया काम न आये, व्यर्थ साधन लाख।।
नश्वर जग से अपनेपन का, जोड़ मत संबंध।
जितनी सकते उतनी फैला, सद्गुण सरस गंध।।
मिथ्या आडम्बर के पीछे, भागना तू छोड़।
जिस पथ पूँजी राम नाम की, पग भी उधर मोड़।।
सत्य भान ही दिव्य ज्ञान है, चिंतन अमृत जान।
स्वयं स्वयं में देख झाँककर, सच स्वयं पहचान।।
भाड़े का घर तन को समझो, मालिकाना त्याग।
सत् चित अरु आनंद रूप से, हृदय में हो राग।।
आत्मबोध से भवसागर को, बावरे कर पार।
तन-मन अपना निर्मल रखकर, शुचिता रूप धार।।
◆◆◆◆◆◆◆
शंकर छंद विधान- <– लिंक (मात्रिक छंद परिभाषा)
शंकर छंद 26 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + अठकल, सतकल + गुरु + लघु
शंकर छंद – 8 + 8, 7 + 2 + 1 (16+10)
अठकल में (4+4 या 3+3+2 )दोनों रूप मान्य है।
सतकल में (1222, 2122, 2212, 2221) चारों रूप मान्य है।
अंत में गुरु-लघु (21) आवश्यक है।
●●●●●●●●
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शंकर छंद में “नश्वर काया” का अनुभव जनित वर्णन कर के मानव में चिरंतन सत्य के प्रति धारणा जागृत करने का सराहनीय प्रयास। भूरि-बधाई।
रचना को आपका आर्शीवाद मिला बाबाजी यह मेरा सौभाग्य है।
प्रणाम आपको।
सीताराम
शंकर छंद में आत्मबोधात्मक सुंदर रचना।
उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार बाबाजी।
हार्दिक आभार आदरणीय बाबाजी।
शुचिता बहन हमारी सनातन संस्कृति की आधारभूत अवधारणा जीवन की नश्वरता पर प्रकाश डालती सुंदर रचना।
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आपका।
जीवन की सार बात बताती रचना हुई है।
हार्दिक आभार।