शिखरिणी छंद
“भारत वंदन”
बड़ा ही प्यारा है, जगत भर में भारत मुझे।
सदा शोभा गाऊँ, पर हृदय की प्यास न बुझे।।
तुम्हारे गीतों को, मधुर सुर में गा मन भरूँ।
नवा माथा मेरा, चरण-रज माथे पर धरूँ।।
यहाँ गंगा गर्जे, हिमगिरि उठा मस्तक रखे।
अयोध्या काशी सी, वरद धरणी का रस चखे।।
यहाँ के जैसे हैं, सरित झरने कानन कहाँ।
बिताएँ सारे ही, सुखमय सदा जीवन यहाँ।।
दया की वीणा के, मुखरित हुये हैं स्वर जहाँ।
सभी विद्याओं में, अति पटु रहे हैं नर जहाँ।।
उसी की रक्षा में, तन मन लगा तत्पर रहूँ।
जरा भी बाधा हो, अगर इसमें तो हँस सहूँ।।
खुशी के दीपों की, जगमग यहाँ लौ नित जगे।
हमें प्राणों से भी, अधिक प्रिय ये भारत लगे।।
प्रतिज्ञा ये धारूँ, दुखित जन के मैं दुख हरूँ।
इन्हीं भावों को ले, ‘नमन’ तुम को अर्पित करूँ।।
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शिखरिणी छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
रखें छै वर्णों पे, यति “यमनसाभालग” रचें।
चतुष् पादा छंदा, सब ‘शिखरिणी’ का रस चखें।।
“यमनसाभालग” = यगण, मगण, नगण, सगण, भगण लघु गुरु ( कुल 17 वर्ण)
122 222, 111 112 211 12
(शिव महिम्न श्लोक इसी छंद में है।)
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
अति सुंदर रचना है जी।
टिप्पणी का हृदयतल से अभिनंदन।
भारत महिमा बहुत ही सुंदर लिखी है आपने
यशस्वी तुम्हारी टिप्पणी का बहुत बहुत धन्यवाद।
भारत महिमा गान बहुत ही सुंदर,अप्रतिम सृजन हुआ है। शिखरिणी छंद भी इस ओजपूर्ण रचना से धन्य हुआ।
शुचिता बहन नव उत्साह देती इस प्रतिक्रिया का.हार्दिक धन्यवाद।
भारत धरा का बहुत ही ओजपूर्ण वर्णन शिखरिणी छंद में हुआ है। शत शत नमन इस पावन धरा को।
आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक अभिनंदन और हृदय से स्वागत।