Categories
Archives

शुभगीता छंद

‘जीवन संगिनी’

सदा तुम्हारे साथ है जो, मैं वही आभास हूँ।
अधीर होता जो नहीं है, वो अटल विश्वास हूँ।।
कभी तुम्हारा प्रेम सागर, मैं कभी हूँ प्यास भी।
दिया तुम्हे सर्वस्व लेकिन, मैं तुम्हारी आस भी।।

निवेदिता हूँ संगिनी हूँ, मैं बनी अर्धांगिनी।
प्रभात को सुखमय बनाती, हूँ मधुर मैं यामिनी।।
खुशी तुम्हारी चैन भी मैं, हूँ समर्पण भाव भी।
चली तुम्हारे साथ गति बन, हूँ कभी ठहराव भी।।

रहूँ सहज या हूँ विवश भी, स्वामिनी मैं दासिनी।
चुभे उपेक्षा शूल तुमसे, पर रही हिय वासिनी।।
चले विकट जब तेज आँधी, ढाल हाथों में धरूँ।
सुवास पथ पाषाण पर भी, नेह पुष्पों की करूँ।।

भुला दिये अधिकार मैंने, याद रख कर्तव्य को।
बनी सुगमता मार्ग की मैं, पा सको गन्तव्य को।।
दिया तुम्हे सम्पूर्ण नर का, मान अरु अभिमान भी।
चले तुम्हारा कुल मुझी से, गर्व हूँ पहचान भी।।

अटूट बन्धन ये हमारा, प्रेम ही आधार है।
बँधा रहे यह स्नेह धागा, यह सुखी संसार है।।
सुखी रहे दाम्पत्य अपना, भावना यह मूल है।
मिले हमेशा प्रेम पति का, तो कहाँ फिर शूल है।।
◆◆◆◆◆◆◆◆
शुभगीता छंद विधान- (मात्रिक छंद परिभाषा)

शुभगीता छंद 27 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 15 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है।  दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1 2122 2122, 2122 212(S1S) (15+12)

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है किंतु अंत में रगण (S1S) आना अनिवार्य है।
●●●●●●●●●

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

6 Responses

  1. गृहस्थ जीवन में अनेक झंझावातों को झेलते हुये हँसी खुशी जीवन बिताती नारी का सुंदर चित्रण ।

    1. सीताराम
      एक भारतीय नारी का पत्नी के रूप में अत्यंत उदात्त स्वरूप का वर्णन,कर्तव्य के आगे अपने अधिकारों को भी त्याग देने के लिए तैयार है।सम्प्रति अपने अधिकारों की माँग हर कहीं देखने को मिलती है जो जीवन के सरसता और समरसता दोनों को तोड़ने का कुचक्र मात्र है।ऐसी रचना के लिए हार्दिक बधाई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *