संत छंद
‘संकल्प’
हुई भोर नयी, आओ स्वागत करलें।
चलो साथ बढ़ें, नव ऊर्जा हिय भरलें।।
खिली धूप धवल, कहाँ तिमिर अब गहरा।
रुचिर पुष्प खिले, बाग रहा है लहरा।।
करें कार्य वही, जिससे निज मन सरसे।
बनें निपुण सदा, उत्सुकता हिय बरसे।।
नया जोश जगा, नव राहें हम गढलें।
प्रबल भाव भरें, प्रगति शिखर पर चढ़ लें।।
सदा धैर्य रखें, धार शांति निज मन में।
रहें सदा सजग, ढूँढें गुण हर जन में।।
अटल होय बढ़ें, निडर बनें, हम दमकें।
बढ़े कार्य लगन, शौर्य भाव रख चमकें।।
उच्च भाव रहे, ऊँचे देखें सपने।
अडिग खड़े रहें, हम जीवन में तपने।।
सुगम पंथ चुनें, निश्चय भाव प्रबल हों।
चलो साथ चलें, निष्ठा अजय सबल हों।।
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संत छंद विधान-
संत छंद 21 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 9 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
3 6, 6 6
छक्कल की संभावित संभावनाएं-
(3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में 112 (सगण) अनिवार्य है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत प्यारी सीखभरी कविता।
हार्दिक आभार।
शुचिता बहन संत छंद में सफल जीवन जीने की सार बातों का बहुत सुंदर निरूपण हुआ है। बहुत बढ़िया कविता।
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का आभार भैया।