सरसी छंद
‘मुन्ना मेरा सोय’
ओ मेघा चुप हो जा मेघा, मुन्ना मेरा सोय।
खिल-खिल हँसता कभी मुलकता, मधुर स्वप्न में खोय।।
घड़-घड़ भड़-भड़ जोर-जोर से, शोर मचाना छोड़।
आँख लगी मुन्ने की अब तो, ओ निर्मम मत तोड़।।
डर कर होंठ निकाले जब-तब, रही पलक भी काँप।
ओ विराट नभ के बिगड़े सुत, मन मुन्ने का भाँप।।
उसका तन कोमल मन भोला, छोटा सा आकार।
ये कैसा बड़पन है तेरा, ये कैसा प्रतिकार।।
कृषक झूमकर तुझे बुलाये, नाचे देखो मोर।
पूरा है आकाश तुम्हारा, धरती का हर छोर।।
प्यासे की तुम प्यास बुझाओ, करलो तुम उपकार।
बिना बुलाये आगन्तुक का, होता कम सत्कार।।
नन्ही सी गोरैया चिड़िया, बचा रही निज नीड़।
वो है मुन्ने की सखि प्यारी, समझो उसकी पीड़।।
संग खेलने मेघा आना, साथ लगाना दौड़।
लेकिन कच्ची नींद न तोड़ो, विनय करूँ कर जोड़।।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया,असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन वात्सल्य रस में पगी सरसी छंद की बहुत सुंदर कविता।
हार्दिक आभार भैया।
सरसी छंद में लोरी नुमा बहुत प्यारी रचना।
हार्दिक आभार आपका।