सारस छंद,
‘संकल्प’
नित्य नया काव्य रचूँ, गीत लिखूँ ओज भरे।
प्रेम भरे शब्द सजे, भाव भरा व्योम झरे।।
लक्ष्य नये धार रखूँ, सृष्टि धवल पृष्ठ लगे।
धन्य धरा आज करूँ, स्वच्छ रुचिर भाव जगे।।
भ्रांति त्यजूँ शांति चखूँ, प्रीत जहाँ शांति वहाँ।
बन्धु लगे लोग सभी, दौड़ रही दृष्टि जहाँ।।
देश सकल रूप नवल, एक सबल राष्ट्र बने।
शुद्ध हवा, प्राण दवा, पेड़ लगे सर्व घने।।
ठान लिया मान लिया, स्वार्थ रहित प्रेम करूँ।
अंध मिटे भ्रांति छँटे, ज्ञान भरा दीप धरूँ।।
क्लेश मिटे, दर्प छुटे, द्वेष कटे, कष्ट घटे।
चित्त मलिन स्वच्छ करूँ, हृदय छुपा मैल कटे ।।
ज्ञान परम जान लिया, एक अटल सत्य यही।
मृत्यु निकट नित्य बढ़े, बात यही एक सही।।
सीख यही चित्त धरो, सार भरे ग्रंथ पढो।
प्रेम बढा मानव से, कीर्ति सजित मान गढो।।
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सारस छंद विधान-
सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2112 2112, 2112 2112
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है लेकिन इस छंद में 11 को 2 करने की छूट नहीं है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत सुंदर जीवन की सच्ची सीख देती रचना।
हार्दिक आभार आपका।
शुचिता बहन सारस छंद में बहुत ही उत्तम मनोकामना प्रगट की है।
आस बड़ी मधुर लगी, पूर्ण बिना देर हुवे।
भाव तुम्हारे शुचिता, यूँ प्रति दिन गगन छुवे।।
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हृदय से आभार भैया।