सार छंद / ललितपद छंद
“महर्षि वाल्मीकि”
दस्यु राज रत्नाकर जग में, वालमीकि कहलाए।
उल्टा नाम राम का इनको, नारद जी जपवाए।।
मरा मरा से राम राम की, सुंदर धुन जब आयी।
वालमीकि जी ने ब्रह्मा सी, प्रभुताई तब पायी।।
घोर तपस्या में ये भूले, तन की सुध ही सारी।
दीमक इनके तन से चिपटे, त्वचा पूर्ण खा डारी।।
प्रणय समाहित क्रोंच युगल को, तीर व्याध जब मारा।
प्रथम अनुष्टुप छंद इन्होंने, करुणा में रच डारा।।
विधि तब प्रगटे, बोले इनसे, शारद मुख से फूटी।
राम-चरित की मधुर पिलाओ, अब तुम जग को बूटी।।
रामायण से महाकाव्य की, इनने सरित बहायी।
करे निमज्जन उसमें ये जग, होते राम सहायी।।
शरद पूर्णिमा के दिन इनकी, मने जयंती प्यारी।
कीर्ति पताका जग में फहरे, शरद चन्द्र सी न्यारी।।
शत शत ‘नमन’ आदि कवि को है, चरणों में है वन्दन।
धूम धाम से इस अवसर पर, सभी करें अभिनन्दन।।
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सार छंद / ललितपद छंद विधान –
सार छंद जो कि ललितपद छंद के नाम से भी जाना जाता है, चार पदों का अत्यंत गेय सम-पद मात्रिक छंद है। इस में प्रति पद 28 मात्रा होती है। यति 16 और 12 मात्रा पर है। दो दो पद समतुकान्त।
मात्रा बाँट- 16 मात्रिक चरण ठीक चौपाई वाला और 12 मात्रा वाले चरण में तीन चौकल, एक चौकल और एक अठकल या एक अठकल और एक चौकल हो सकता है। 12 मात्रिक चरण का अंत गुरु या 2 लघु से होना आवश्यक है किन्तु गेयता के हिसाब से गुरु-गुरु से हुआ चरणान्त अत्युत्तम माना जाता है लेकिन ऐसी कोई अनिवार्यता भी नहीं है।
छन्न पकैया – छन्न पकैया रूप सार छंद का एक और प्रारूप है जो कभी लोक-समाज में अत्यंत लोकप्रिय हुआ करता था। किन्तु अन्यान्य लोकप्रिय छंदों की तरह रचनाकारों के रचनाकर्म और उनके काव्य-व्यवहार का हिस्सा बना न रह सका। इस रूप में सार छंद के प्रथम चरण में ’छन्न-पकैया छन्न-पकैया’ लिखा जाता है और आगे छंद के सारे नियम पूर्ववत निभाये जाते हैं।
’छन्न पकैया छन्न पकैया’ एक तरह से टेक हुआ करती है जो उस छंद के कहन के प्रति श्रोता-पाठक का ध्यान आकर्षित करती हुई एक माहौल बनाती है। इस में रचनाकार बात की बात में, कई बार गहरी बातें साझा कर जाते हैं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
वाह वाह
आपका अतिसय आभार।
अद्भुत रचना
यशस्वी हार्दिक धन्यवाद।
बहुत सुंदर रचना ।
बहुत बहुत आभार।
सार छंद के माध्यम से आदि कवि वाल्मीकि जी पर अति मनमोहक विस्तृत जानकारी देता हुआ अति प्रसंसनीय सृजन हुआ है।
इस रचना की आपकी हृदय से बधाई देती हूँ।
माँ सरस्वती की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।
शुचिता बहन तुम्हारी इस रचना की संस्तुति का हृदयतल से धन्यवाद ज्ञापित कृता हूँ।
वाल्मीकि जयंती के शुभावसर पर आपकी कविता के माध्यम से आदिकवि की विस्तृत जानकारी मिली।
आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।