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सुखदा छंद,

‘गंगाजल’

गंगाजल की महिमा, दुनिया गाती है।
गंगा सारे जग की, माँ कहलाती है।।
पापमोचनी गंगा, पाप सभी धोती।
मोक्षदायिनी सरिता, मुक्तिद्वार होती।।

जीवनमय औषध वन, पग-पग लहराये।
जिस पथ से भागीरथ, गंगा को लाये।।
स्वस्थ निरोगी काया, प्रखर बुद्धि बाँटे।
पावन जल का सेवन, सकल दोष छाँटे।।

बिन गंगाजल पूजा, व्यर्थ कही जाती।
स्नान-दान से ऊर्जा, अद्भुत है आती।।
नित प्रसाद जो पाते, भवसागर तरते।
दुखद स्वप्न से मानव, नहीं कभी डरते।।

शीतल अभिसिंचन कर, सगर पुत्र तारे।
सुधा तुल्य जल से सब, रोग कष्ट हारे।।
शुचि दुर्गंध रहित जल, वर्षो तक रहता।
चरणामृत सम भू पर, सदियों से बहता।।

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सुखदा छंद विधान-

सुखदा छंद 22 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 22, 2222S
12 +10 = 22 मात्राएँ

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में गुरु वर्ण अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।

मात्रिक छंद परिभाषा
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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