सुमति छंद
“भारत देश”
प्रखर भाल पे हिमगिरि न्यारा।
बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
पद पखारता जलनिधि खारा।
अनुपमेय भारत यह प्यारा।।
यह अनेकता बहुत दिखाये।
पर समानता सकल बसाये।।
विषम रीत हैं अरु पहनावा।
सकल एक हों जब सु-उछावा।।
विविध धर्म हैं, अगणित भाषा।
पर समस्त की यक अभिलाषा।।
प्रगति देश ये कर दिखलाए।
सकल विश्व का गुरु बन छाए।।
हम विकास के पथ-अनुगामी।
सघन राष्ट्र के नित हित-कामी।।
‘नमन’ देश को शत शत देते।
प्रगति-वाद के परम चहेते।।
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सुमति छंद विधान – <– लिंक (वर्णिक छंद परिभाषा)
गण “नरानया” जब सज जाते।
‘सुमति’ छंद की लय बिखराते।।
“नरानया” = नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
12 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद, 4 चरण दो दो सम तुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
https://nayekavi.blogspot.com
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सुमति छंद में भारत की विभिन्नता में एकता को बहुत ही सुसज्जित शब्दों से आपने काव्यमयी जामा पहनाया है।
अति सुंदर सृजन आदरणीय भैया।
जय भारत।
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय खिलाती मोहक टिप्पणी का आत्मिक धन्यवाद।
भारत देश की अक्षुण्ण परंपराओं का बखान करती अति सुंदर रचना।
आपकी मन हर्षाती टिप्पणी का आत्मिक आभार।