Categories
Archives

सुमित्र छंद

“मेरा भाई”

बडी खुशी मुझ को, मिला भाइयों का दुलार।
दिखे अलग सबसे, मेरे भाई शानदार।।
लिये खड़ी बहना, जब राखी का नेह थाल।
निहारते अपलक, बहना को हो कर निहाल।।

सुहावना बचपन, स्मर स्मर अब हों लोटपोट।
किये पढाई हम, साथ पाठ सब घोट घोट।।
हँसे हँसाये तो, मौसम आता है बसन्त।
थमे न ये खुशियाँ, पल हो जाये ये अनन्त।।

बडा न वो छोटा, मन से हरदम मालदार।
बढ़े वही आगे, सुनकर बहना की पुकार।।
उसे न देखूँ तो, मन हो जाता है उदास।
वही चमक मेरी, मेरे मन का है उजास।।

खुले गगन जैसा, मन भाई का है विशाल।
बने वही ताकत, वो होता है एक ढाल।।
सभी लगे प्यारे, यूँ तो रिश्ते हैं अनेक।
लगे न घर घर सा, जिस घर भाई हो न एक।।
◆◆◆◆◆◆◆◆

सुमित्र छंद विधान-

सुमित्र छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 10 और 14 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका चरणादि एवं चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य है।
दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
121 222, 2222 (अठकल) 2121
10+14=24

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।
सुमित्र छंद का अन्य नाम रसाल छंद भी है।

लिंक –> मात्रिक छंद परिभाषा
●●●●●●●●●

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

4 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *