सुमेरु छंद
“माँ”
परम जिस धाम में, हो तुम गयी माँ।
सुमन अर्पण तुम्हें, ममतामयी माँ।।
पुकारा यूँ लगा, तुमने कहीं से।
लगी फिर रोशनी, आती वहीं से।।
नहीं दिखती मगर, सूरत तुम्हारी।
सजल आँखें तुम्हें, ढूँढ़े हमारी।।
हृदय की चोट वो, अब तक हरी है।
व्यथित मन हो रहा, आँखें भरी है।।
उजाले हैं बहुत, लेकिन डरा हूँ।
उदासी है घनी, तम से भरा हूँ।।
तुम्हें हर बात की, चिंता सताती।
कहाँ कब क्या करूँ, कहकर बताती।।
वृहद जंजाल सा, जग एक मेला।
कहाँ तुम बिन रहा, मैं हूँ अकेला।।
पकड़ आँचल सदा, तेरा चला हूँ।
सदा सानिध्य में, तेरी पला हूँ।।
सहारा था मुझे, बस एक तेरा।
कहो तुम बिन यहाँ, अब कौन मेरा?
सभी कुछ है मगर, तेरी कमी है।
छिपी मुस्कान में, मेरी नमी है।।
सभी खुशियाँ मिले, तुमको जहाँ हो।
न व्याकुलता तुम्हें, पलभर वहाँ हो।।
अगर खुश तुम रहो, खुश मैं रहूँगा।
विरह की वेदना, हँसकर सहूँगा।।
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सुमेरु छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)
सुमेरु छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद 19 मात्रा रहती हैं। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
सुमेरु छंद में 12,7 अथवा 10,9 पर दो तरह से यति निर्वाह किया जा सकता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1222 1222 122
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन माँ के विछोह की पीड़ा असहनीय होती है। विभिन्न स्मृति बिंब की सहायता से इस पीड़ा को तुमने एक और नयी छंद “सुमेरु छंद” के माध्यम से शब्द रूप दिया है।
उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुई भैया।
कविकुल पर नई छंदों में रचनाएँ लिखकर लुप्त प्रायः सभी सनातन छंदों को फिर से जागृत करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही प्रयत्नशील हूँ।
हमारे पास छंदों की समृद्ध धरोहर विद्यमान है,इसके रहते कहीं ओर भटकने को मन स्वीकार नहीं करता।
आपका आशीर्वाद सदैव मिलता रहे।
शुचिता जी माँ के परम धाम गमन की असीम पीड़ा को आपने बहुत पीड़ा भरे शब्दों में उकेरा है।
अतिशय आभार आपका।