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सोरठा छंद

‘सोरठा विधान’

लिखें सोरठा आप, दोहे को उल्टा रचें।
अनुपम छोड़े छाप, लिखे सोरठा जो मनुज।।

अठकल पाछे ताल, विषम चरण में राखिये।
विषम अंत की चाल, तुकबंदी से ही खिले।।

अठकल सरल विधान, जगण शुरू में टाल दें।
दो चौकल रख ध्यान, या त्री-त्री-दो मत्त हो।।

सम का मात्रा भार, अठकल पाछे हो रगण ।
सोरठ-सम का सार, तेरह मात्रा ही रखें।।

माँ शारद उर राख, रचें सोरठा मन हरण।
बढ़ती इससे साख, छंद सनातन यह मधुर।।

 

सोरठा छंद ‘राम महिमा’

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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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