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“हास्य कुण्डलिया”

बहना तुमसे ही कहूँ, अपने हिय की बात,
जीजा तेरा कवि बना, बोले सारी रात।
बोले सारी रात, नींद में कविता गाये,
भृकुटी अपनी तान, वीर रस गान सुनाये।
प्रकट करे आभार, गजब ढाता यह कहना,
धरकर मेरा हाथ, कहे आभारी बहना।

लिंक :- कुण्डलिया छंद विधान

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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