Categories
Archives

अवतार छंद,

‘गोरैया’

फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे।
चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।।
मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे।
तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।।

चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती।
अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।।
छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी।
है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।।

ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में।
है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।।
मिलजुल कर रहती सदा, व्यवहार की धनी।
घर-आँगन चहका रही, मृदु भाव से सनी।।

सुन मेरी प्यारी सखी, तुम सुखद भोर हो।
निज आँगन समझो इसे, घर यही ठोर हो।।
मैं दाना दूँगी तुम्हें, जल नित्य ही भरूँ।
मत जाना दर से कभी, ‘शुचि’ विनय मैं करूँ।।

◆◆◆◆◆◆◆

अवतार छंद विधान-

अवतार छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 13 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 2222 12, 2 3 212

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत 212 (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।

मात्रिक छंद परिभाषा

●●●●●●●●

शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’

तिनसुकिया, असम

4 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *