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आल्हा छंद

‘सैनिक’

मैं सैनिक निज कर्तव्यों से, कैसे सकता हूँ मुँह मोड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।

मातृभूमि की रक्षा करने, खड़ा रहूँ बन्दूकें तान।
कहता है फौलादी सीना, मैं सैनिक हूँ अति बलवान।।
डटा रहूँगा सीमा पर मैं, खुद भागेंगे अरि रण छोड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।

अरि शोणित का हूँ मैं प्यासा, करूँ पान का अथक प्रयास।
थर्र थर्र थर्रा दूँ रिपु दल, रग-रग को इसका अभ्यास।
साथ खड़ी है मेरे तनकर, भारत की सेना बेजोड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।

मेरे भारतवासी सुनलो, मैं घाटी से रहा पुकार।
अर्थव्यवस्था अरि की तोड़ो, एकजूट हो करो प्रहार।।
किसमें कितनी देशभक्ति है, यही लगालो अब सब होड़।
प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।।

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’

तिनसुकिया,असम

आल्हा छंद विधान

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