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कलहंस छंद

“तुलसी चरित”

तिथि सावन शुक्ल सप्तमी पावन।
जन्मे तुलसी धरती सरसावन।।
रचने को राम चरित मनभावन।
भू के जन जन का मन हर्षावन।।

थे आत्माराम पिता तुलसी के।
वे दीप्तिमान सुत माँ हुलसी के।।
कवि गण में वे थे परम श्रेष्ठ कवि।
अंकित मन में प्रभु सगुण रूप छवि।।

थे दास्य भक्ति के परम उपासक।
श्री रामचन्द्र प्रभु मन के शासक।।
बस राम एक भवसागर खेवक।
तुलसी अति दीन हीन लघु सेवक।।

वे वेद,शास्त्र,ज्योतिष के ज्ञाता।
बहु धर्म सनातन ग्रंथ प्रदाता।।
रच राम चरित मानस अनमोला।
रस राम नाम जन मन में घोला।।
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कलहंस छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)

यह 18 मात्राओं का मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

द्विकल+चौपाई (16 मात्रा) = 18मात्राएँ।
(द्विकल 2 या 11 हो सकता है।

चौपाई छंद विधान

चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

5 Responses

  1. शुचिता “कलहंस” छंद रच प्यारी।
    तुलसी की महिमा गायी न्यारी।।
    यह सृजन तुम्हारा बड़ा अनोखा।
    दूँ तुम्हें बधाई लागै चोखा।।

    शुचिता बहन इस रचना की बहुत बहुत बधाई।

  2. आपकी रचना से भक्त कवि तुलसी दास जी के जीवन चरित के विषय में अच्छी जानकारी मिली।

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