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किरीट सवैया ‘चेतावनी’

भीतर मत्सर लोभ भरे पर, बाहर तू तन खूब
सजावत।
अंतर में मद मोह बसा कर, क्यों फिर स्वांग रचाय दिखावत।
दीन दुखी पर भाव दया नहिँ, आरत हो भगवान
मनावत।
पाप घड़ा उर माँहि भरा रख, पागल अंतरयामि
रिझावत।।
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किरीट सवैया विधान –

यह 24 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।

यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 8 आवृत्ति प्रति चरण में रहती है। इसका संरचना गुरु लघु लघु × 8 है।

(211 211 211 211 211 211 211 211)

सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु किरीट के चरण में 12 – 12 वर्ण के 2 यति खंड रखने से लय की सुगमता रहती है तथा रोचकता भी बढ जाती है। क्योंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।

लिंक –> सवैया छंद विधान
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

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