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कृपाण घनाक्षरी

“विनती”

जगत ये पारावार, फंस गया मझधार,
दिखे नहीं आर-पार, थाम प्रभु पतवार।

नहीं मैं समझदार, जानूँ नहीं व्यवहार,
कैसे करूँ मनुहार, करले तु अंगीकार।

चारों ओर भ्रष्टाचार, बढ़ गया दुराचार,
मच गया हाहाकार, धारो अब अवतार।

छाया घोर अंधकार, प्रभु कर उपकार,
करके तु एकाकार, करो मेरा बेड़ा पार।।
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कृपाण घनाक्षरी विधान – (घनाक्षरी विवेचन)

चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 32 होती है। पद में 8, 8, 8, 8 वर्ण पर यति रखना अनिवार्य है। पद के चारों चरणों का अंत गुरु वर्ण (S) तथा लघु वर्ण (1) से होना आवश्यक है। हर यति समतुकांत होनी भी आवश्यक है। एक पद में चार यति होती है। इस प्रकार छंद की 16 की 16 यति समतुकांत होगी।

घनाक्षरी एक वर्णिक छंद है अतः वर्णों की संख्या प्रति पद 32 वर्ण से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। छंद की सारी यतियाँ समतुकांत होने के कारण चारों पदों में समतुकांतता स्वयंमेव निभेगी।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

4 Responses

  1. भ्रष्टाचार, दुराचार से भरे जगत में जीने की छटपटाहट बहुत उत्कृष्ट रूप से प्रकट हुई है।

  2. कृपाण घनाक्षरी में जगत में व्याप्त घोर अंधकार रूपी बुराइयों को सर्वथा समाप्त करने की बहुत सुंदर विनती।
    जगत के कल्याण के लिए की गई विनती वाकई आपके परोपकार भाव को दर्शा रहा है।
    सृजन की आत्मीय बधाई।

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