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गीता छंद

“गीता पढ़ने के लाभ”

गीता पढ़ें गीता सुनें, गीता करे कल्याण।
पुस्तक इसे समझें नहीं, भगवान के हैं प्राण।।
है दिव्य वाणी कृष्ण की, उद्गार अपरम्पार।
सब सार जीवन का भरा, हर धर्म का आधार।।

उपदेश समता भाव का, निष्कामता का ज्ञान।
सिद्धान्त रत्नों से जड़ित, मन से करें सम्मान।।
यह भेद तोड़े जाति के, कल्याण करना धर्म।
यदि चाहते पथ हो सुगम, समझें इसे ही कर्म।।

पढ़ते रहें धारण करें, नित अर्थ निकलें गूढ।
विकसित करे बल, बुद्धि को, रहता न कोई मूढ़।।
है ज्ञान का रवि रूप यह, निष्काम सेवा भाव।
भव पार निश्चित जो करे, है श्रेष्ठ यह वो नाव।।

संशय हरे चिंता मिटे, दुख शोक होते नष्ट।
अध्यन करे नित तो कटे, सब मूल से ही कष्ट।।
यह क्रोध, ममता, दुष्टता, भय मौत का दे तोड़।
सम्बन्ध गीता से मनुज, अविलम्ब ले तू जोड़।।

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गीता छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)

गीता छंद 26 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 14 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2212 2212, 2212 221 (14+12)

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में ताल (21) आवश्यक है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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