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चन्द्रिका छंद

“वचन सार”

सुन कर पहले, कथ्य को तोलना।
समझ कर तभी, शब्द को बोलना।।
गुण यह जग में, बात से मान दे।
सरस अमिय का, सर्वदा पान दे।।

मधुरिम कथनी, प्रेम की जीत दे।
कटु वचन वहीं, तोड़ ही प्रीत दे।।
वचन पर चले, साख व्यापार की।
कथन पर टिकी, रीत संसार की।।

मुख अगर खुले, सत्य वाणी कहें।
असत वचन से, दूर कोसों रहें।।
जग-मन हरता, सत्यवादी सदा।
यह बहुत बड़ी, मानवी संपदा।।

छल वचन करे, भग्न विश्वास को।
कपट हृदय तो, प्राप्त हो नाश को।।
व्रण कटु वच का, ठीक होता नहीं।
मधु बयन जहाँ, हर्ष सारा वहीं।।
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चन्द्रिका छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा) <– लिंक

“ननततु अरु गा”, ‘चन्द्रिका’ राचते।
यति सत अरु छै, छंद को साजते।।

“ननततु अरु गा” = नगण नगण तगण तगण गुरु

111 111 2,21 221  2 = 13 वर्ण, 7, 6 यति।

13 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद।

4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

6 Responses

  1. आपकी मधुर रचना पढ़कर आनंद आया। आपका छन्द परिचय अतिज्ञानमय था।

    आप जैसे छंदज्ञ और काव्यज्ञ को मेरा प्रणाम। मैं भी छन्द की परम्परा में रूचि रखता हूँ और छन्द में लिखता हूँ। परन्तु हिंदी छन्दों के विषय में कुछ विशेष प्रश्न हैं जिनके उत्तर मैं आपसे पाना चाहूँगा। यदि आपसे Whatsapp, E-mail या Mobile के ज़रिये संपर्क हो सके तो आपका आभारी रहूँगा। आपसे सीखने का इच्छुक।

    E-mail: jkyadav1006@gmail.com

  2. इतनी मुश्किल वर्णिक छंद में भी भावों से नहीं भटकना आपकी लेखनी की योग्यता को दर्शाता है। अद्भुत शक्ति है आपकी कलम में।

    “मधुरिम रचना, चंद्रिका छंद की।
    पढ़कर बहती, धार आनंद की।।
    हरदम सबके, बोल मीठे रहे।
    ‘नमन’ वचन का, सार भी ये कहे।।”

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