चौपाई छंद
‘माँ की वेदना’
बेटी ने खुशियाँ बरसाई। जिस दिन वो दुनिया में आई।।
उसके आने से मन महका। कोना-कोना घर का चहका।।
जीवन में फैला उजियारा। समय बीतता उस पर सारा।।
झूला बाहों का था डाला। हरख-हरख बेटी को पाला।।
वो रोती तो मैं रो देती। हँसती तो मैं भी हँस लेती।।
नखरे उसके मुझे सुहाते। सपने उसके मन को भाते।।
चाव चढ़ाकर उसे पढ़ाती। डाँटा भी तो गले लगाती।।
आगे बढ़ना सदा सिखाया। मार्ग लक्ष्य का उसे दिखाया।।
कर्तव्यों को धारण करना। सहनशक्ति रख सदा उभरना।
लेकिन अत्याचार न सहना। निर्बल बनकर कभी न रहना।।
बचपन से यौवन की दूरी। पलक झपकते होती पूरी।।
रीति बड़ी यह है दुखदाई। सदा बेटियाँ हुई पराई।।
ब्याह रचा पर घर अपनाती। साथ पिया का सदा निभाती।।
बन्धन में जकड़ी सी जाती। यदा-कदा पीहर अब आती।।
मेरे मन को विरह सताये। बिन बिटिया के रहा न जाये।।
व्याकुल मन बेटी को तरसे। झर-झर आँसू जब-तब बरसे।।
अब जब मिलने वो है आती। गिनती कर दिन रहकर जाती।।
भूली मैं अधिकार जताना। बेटी पर धन है यह माना।
चौपाई छंद विधान
मात्रिक छंद परिभाषा
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
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चौपाई छंद में माँ की विरह वेदना का सांगोपांग वर्णन।
हार्दिक आभार भैया।
वाह माँ पर बहुत प्यारी रचना हुई है।
हार्दिक आभार आपका।