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Category: कुण्डलिया छंद

हास्य कुण्डलिया

“हास्य कुण्डलिया”

बहना तुमसे ही कहूँ, अपने हिय की बात,
जीजा तेरा कवि बना, बोले सारी रात।
बोले सारी रात, नींद में कविता गाये,
भृकुटी अपनी तान, वीर रस गान सुनाये।
प्रकट करे आभार, गजब ढाता यह कहना,
धरकर मेरा हाथ, कहे आभारी बहना।

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कुण्डलिया छंद, ‘गंगा मैया’

कुण्डलिया छंद, ‘गंगा मैया’

गंगा मैया आपकी,शरण पड़े नर नार।
पावन मन निर्मल करो, काटो द्वेष विकार।।

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कुण्डलिया छंद “मोबायल”

कुण्डलिया छंद

मोबायल से मिट गये, बड़ों बड़ों के खेल।
नौकर, सेठ, मुनीमजी, इसके आगे फेल।
इसके आगे फेल, काम झट से निपटाता।
मुख को लखते लोग, मार बाजी ये जाता।
निकट समस्या देख, करो नम्बर को डॉयल।
सौ झंझट इक साथ, दूर करता मोबायल।।

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कुण्डलिया छंद “विधान”

कुण्डलिया छंद “विधान”

कुण्डलिया छंद दोहा छंद और रोला छंद के संयोग से बना विषम छंद है। इस छंद में ६ पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। यह छंद दो छंदों के मेल से बना है जिसके पहले दो पद दोहा छंद के तथा शेष चार पद रोला छंद से बने होते हैं।

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