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Category: मंदाक्रान्ता छंद

मंदाक्रान्ता छंद “जागो-जागो”

वाणी बोलो,सुनकर जिसे,काल भी जाग जाए।
आगे आओ,सुरभि जग के,नाम बाँटो सुहाए।।
आभा फैले,धरणि तल में,गान पंछी सुनाएँ।
प्रातः जागे,सब जन जगें,सौख्य का सार पाएँ।।

मंदाक्रान्ता छंद

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मंदाक्रान्ता छंद “साध्य की खींच रेखें”

मंदाक्रान्ता छंद
गाना होता,मगन मन से,राम का नाम प्यारे।
आओ गाएँ,हम-तुम सभी,त्याग दें काम सारे।।
मिथ्या जानो,जगत भर के,रूप-लावण्य पाए।
वेदों के ये,वचन पढ़ के,काव्य के छंद गाए।।

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मंदाक्रान्ता छंद “लक्ष्मी स्तुति”

मंदाक्रान्ता छंद विधान –

“माभानाता,तगग” रच के, चार छै सात तोड़ें।
‘मंदाक्रान्ता’, चतुष पद की, छंद यूँ आप जोड़ें।।

“माभानाता, तगग” = मगण, भगण, नगण, तगण, तगण, गुरु गुरु (कुल 17 वर्ण)

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