शार्दूलविक्रीडित छंद ‘माँ लक्ष्मी वंदना’
शार्दूलविक्रीडित छंद ‘माँ लक्ष्मी वंदना’ सारी सृष्टि सदा सुवासित करे, देती तुम्ही भव्यता। लक्ष्मी हे कमलासना जगत में, तेरी बड़ी दिव्यता।। पाते वो धन सम्पदा सहज ही, ध्यावे तुम्हे जो सदा। आकांक्षा मन की सभी
शार्दूलविक्रीडित छंद ‘माँ लक्ष्मी वंदना’ सारी सृष्टि सदा सुवासित करे, देती तुम्ही भव्यता। लक्ष्मी हे कमलासना जगत में, तेरी बड़ी दिव्यता।। पाते वो धन सम्पदा सहज ही, ध्यावे तुम्हे जो सदा। आकांक्षा मन की सभी
शार्दूलविक्रीडित छंद विधान –
“मैं साजूँ सतताग” वर्ण दश नौ, बारा व सप्ता यतिम्।
राचूँ छंद रसाल चार पद की, ‘शार्दूलविक्रीडितम्’।।
“मैं साजूँ सतताग” = मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और गुरु।
222 112 121 112// 221 221 2
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।